झिंझाना। मेरा पति मजदूरी करके दो वक्त की रोटी लाता था, किसी का क्या बिगाड़ा था उसने…?” — यह सवाल गांव बल्हेड़ा की पिंकी के चेहरे पर लिखी हुई बेबसी से बार-बार उभरता है। मंगलवार रात उसका जीवन तब थम गया, जब चार लोगों ने उसके पति जितेंद्र (30) को घर से बुलाया और यमुना नदी के किनारे ले जाकर ऐसा जुल्म ढाया कि रूह कांप जाए।
जाति सूचक गालियां, लाठियों की बरसात और डुबो-डुबोकर की गई पिटाई ने एक मजदूर की जिंदगी को मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया। जितेंद्र को अधमरी हालत में यमुना की रेत में दबा दिया गया। आधा शरीर रेत में, आधा बाहर — इंसान नहीं, मानो किसी जानवर की तरह जमींदोज कर दिया गया हो।
रातभर घर नहीं लौटे तो पत्नी पिंकी की आंखों से नींद उड़ गई। सुबह परिजनों ने तलाश की, पुलिस को सूचना दी। यमुना किनारे जब पिंकी की निगाहें अपने जीवनसाथी पर पड़ीं, तो चीख निकल गई — “उठो जितेंद्र… देखो बच्चे तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं…” मगर जितेंद्र बेसुध पड़ा था, शरीर पर जख्मों की लकीरें और रूह में गहराई तक उतरता दर्द।
परिजनों का आरोप है कि पहले झिंझाना थाने की पुलिस ने इसे मामूली मारपीट बताकर टाल दिया। इंसाफ की आस में घायल को लेकर परिजन एसपी रामसेवक गौतम के पास पहुंचे। एसपी ने तत्काल जांच के निर्देश दिए।
शुक्रवार को भाजपा नेता घनश्याम पारचा, बादल गौतम, प्रधानपति सुनित व अफसर और गांव के अन्य लोग थाने पहुंचे। दबाव के बाद पुलिस ने दो नामजद — सद्दाम व मंगा — और दो अज्ञात आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट समेत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया।
पिंकी की आंखों में अब भी एक ही सवाल है — “क्या मजदूर होना, दलित होना ही उसका गुनाह था?”
पुलिस का कहना है कि जल्द ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जाएगा। मगर गांव में डर और दर्द अब भी फैला हुआ है।
(रियल बुलेटिन | विशेष — शकील राणा)